शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

कच्ची सब्जी खायेंगे -- सुजान पंडित

गै के दाम में आग लगी है, कैसे इसे बुझाएंगे|
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे||

सप्ताह भर के राशन से महीनों काम चलाता हूँ|
झोली में आता था पहले, हैंग्की में अब लाता हूँ||
थाली-बरतन के बदले अब, कलछुल में थाल सजायेंगे --
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे --

आटा, चावल, दाल, चीनी, जब भी घर में आता है|
त्योहारों सा उत्सव घर का, बच्चा-बूढ़ा मनाता है||
आज का दिन है बड़ा सुहाना, लंच डीनर खायेंगे --
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे --


मेहनत का फल मीठा होता, कभी पढ़ा था बचपन में|
श्रम से ऐसे बदन भिगोता, जैसे भीगे सावन में||
गीता की वाणी पर चलकर, कबतक जी हम पाएंगे --
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे --

प्रकाशित : 2 अप्रैल 2010 - rachanakar.blogspot.com

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