रविवार, फ़रवरी 28, 2010

कुरसी हो गयी मैली -- सुजान पंडित


यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है|
कुरसी हो गयी मैली उसको गंगाजल से धोना है||
१. तन पर होंगे खादी, बोली मिस्री सी होगी मीठी| 
शुभचिंतक बन साथ रहेंगे, जब तक कुरसी नहीं मिलती|| 
जौहरी बनकर चुनना होगा, हमको खांटी सोना है ---
यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है ---
२. जेपी, लोहिया, मौलाना का रूप सजाकर आयेंगे| 
उनके उपदेशों की सीडी, रिमिक्स कर बजवाएंगे||
लेकिन इन बहुरूपियों पर हम सबको फ़िदा न होना है--- 
यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है---
3. होशियारी हो अब इतनी कि, शाख पे उल्लू न बैठे|
देख चुके अंजामें गुलिस्ताँ, फिर से गुलों को न लूटे||
पाक साफ माली से अपने गुलशन को संजोना है --- 
यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है ---
प्रकाशित : ३१ अक्टूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com

सुनलो नेहरु चाचा -- सुजान पंडित


भेज रहा हूँ तुमको ईमेल, सुनलो नेहरु चाचा|
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा||

१) तुमने कहा था बच्चे कल के भारत की तस्वीर है|
होगा नया सवेरा इनसे जागेगा तक़दीर है||
लेकिन हम तो ठगे गए तुम झूठे हो गए चाचा ---
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा ---

२) कुरसी तुम्हरी बन गयी है आज म्यूजिकल चेयर|
टोपी कुर्ता खादी के पर कोई नहीं है फेयर||
शर्म आती है कहने में अब चाचा को भी चाचा ---
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा ---

३) एक बार तुम आओ या हम बच्चों को बुलालो|
भटक रहे हैं अपने पथ से तुम ही हमें सम्हालो||
पुस्तक बैग में है लेकिन पॉकेट में गोली चाचा ---
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा ---

प्रकाशित : १४ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com

झारखण्ड के गहने -- सुजान पंडित


भ्रष्टाचार के है क्या कहने|
झारखण्ड के ये बन गए गहने||

१) मंत्री संतरी दोनों मिलकर|
टेबुल नीचे खाते छुपकर||
लो़कर ही दोनों के सपने ---
भ्रष्टाचार के है क्या कहने ---

२) दस बरस की बाली उमरिया|
नेता अफसर भर ली गगरिया||
बने अरबपति खाकपति थे जितने ---
भ्रष्टाचार के है क्या कहने ---

३) राज्य में क्या कोई कृष्ण आएगा|
इन कंसों को मार गिराएगा||
होंगे जरुर हरिश्चंद्र चमन में ---
भ्रष्टाचार के है क्या कहने ---

प्रकाशित : १८ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com

ऐ बिरसा मुंडा भगवान --सुजान पंडित

सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान| 
तेरा झारखण्ड मरणासन्न है, भेज रहा हूँ ये पैगाम||
तुने जो देखे थे सपने, उसमें लग गए कीड़े फफुंदी| 
नेता अफसर मिलकर सारे उनको डीनर लंच करा दी|| 
राज्य को हो गया फ़ूडपोइजिनिंग, और खुद हो गए पहलवान --- 
सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान ---
तेरे आदर्श दफ्न हो गए, तेरे ही संग मरघट में| 
औपचारिकताएँ बस दिखती, है सरकारी शिलापट में|| 
नामकरण शत् शत् करके, दिखलाते हम बिरसा संतान --- 
सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान ---
तेरी प्रतिमा से दो कौवे, यह कहकर उड़ जाते हैं| 
सारे तंत्र ही गंदे है, हम साफ नहीं कर पाते हैं|| 
बिरसा चल किसी और प्रान्त में, यहाँ नहीं तेरा सम्मान --- 
सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान ---
प्रकाशित : १५ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com

दीपावली में अबकी बार -- सुजान पंडित



 दीपावली में अबकी बार, बात नयी कर जायेंगे|
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे||

१. पकवानों से सजी सजाई, रखी मेज पर थालियाँ|
कुछ खाते कुछ खा जाती, पास पड़ोस की बिल्लियाँ||
जिनके घर में खाली बरतन, उनका थाल सजायेंगे ---
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे ---

२. धनतेरस में मन था अपना, गाड़ी बंगला लेने का|
शुभदिन है लक्ष्मी माता को अपने घर बुलाने का||
तज के मन की आकंक्छा को,  एक चूता छप्पर छानेंगे ---
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे ---

3. आतिशबाजी की धम धम से, गूंज रहा है घर आंगन|
जगमग दीप जला है ऐसे, धरती बन गयी नील गगन||
काली रातें हैं जिनके घर, उनको चाँद दिखाएंगे---
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे ---

प्रकाशित : १५ अक्तूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com / Prabhat Khabar, Ranchi

लुट गई सब्जी की झोली - सुजान पंडित


ऐसी खबर छपी है मौला, आज के अख़बार में. 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में..
आलू, गोभी, परबल, भिन्डी, सौ-सौ ग्राम था झोली में. 
मन में ख़ुशी, आँखों में चमक, रस भरा था उसकी बोली में. 
माँ खड़ी थी चूल्हा जलाये, बेटे के इंतज़ार में ----- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में-----
सारे शहर में चर्चे हो गए, सब्जियों के लुट जाने की. 
बीमा वाले घर घर पहुंचे, नींद उड़ गई थाने की. 
आलू प्याज हो जिनके घर, वो ताले जड़ दिए द्वार में---- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में----
सोने-चाँदी का क्या कहना, प्याज रखते लॉकर में. 
रात जागकर सोते जिस दिन, सब्जी आती है घर में. 
पास पड़ोस से डर लगता, कुछ मांग न ले उधार में---- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में--
प्रकाशित : २६ अक्टूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com