रविवार, फ़रवरी 28, 2010

लुट गई सब्जी की झोली - सुजान पंडित


ऐसी खबर छपी है मौला, आज के अख़बार में. 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में..
आलू, गोभी, परबल, भिन्डी, सौ-सौ ग्राम था झोली में. 
मन में ख़ुशी, आँखों में चमक, रस भरा था उसकी बोली में. 
माँ खड़ी थी चूल्हा जलाये, बेटे के इंतज़ार में ----- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में-----
सारे शहर में चर्चे हो गए, सब्जियों के लुट जाने की. 
बीमा वाले घर घर पहुंचे, नींद उड़ गई थाने की. 
आलू प्याज हो जिनके घर, वो ताले जड़ दिए द्वार में---- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में----
सोने-चाँदी का क्या कहना, प्याज रखते लॉकर में. 
रात जागकर सोते जिस दिन, सब्जी आती है घर में. 
पास पड़ोस से डर लगता, कुछ मांग न ले उधार में---- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में--
प्रकाशित : २६ अक्टूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: