सोमवार, मार्च 01, 2010

संयुक्त परिवार - सुजान पंडित


एक हमारा घर है जिसमें प्यार भरा है बेशुमार।
दादी-दादी, मात-पिता, भाई-बहनों में है दुलार॥
कभी न लड़ते, न झगड़ते, ममता का है ये भंडार ---

1- वक्त बुरे जब सामने आए।
सब मिलजुल कर उसे भगाए॥
दुख का बादल घिर न पाए,
सुख का मौसम खुशियाँ लाए॥
बड़े बुजुर्गों के साए में, होता सबका है उद्धार ---

2- एक काठी तोड़ दे कोई।
गठरी लेकिन तोड़ न पाए॥
संयुक्त परिवार के आगे,
जोर किसी का चल न पाए॥
ऐसे घर को मंदिर कहते, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वार ---

3- अलग-अलग जो घर बसे तो|
रिश्तों में दीवार खड़े हो।|
सर से सबके साए हटे और,
भीड़ में निर्जन खड़े हो॥
कोई न अपना, सभी पराया, खुले स्वार्थ के द्वार ---

प्रकाशित : ८ नवम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com


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