सोमवार, मार्च 01, 2010

मुझे भी देवी सरस्वती मिली थीं / व्यंग्य -- सुजान पंडित


हर रोज की तरह एक दिन मैं सितार पर रियाज कर रहा था कि अचानक मेरे सामने देवी सरस्वती पधारीं। मैं पहले तो अचम्भित हुआ फिर झुककर प्रणाम किया। 
उन्होंने मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया और कहा - तुम कलाकार हो - तुम्हारी तो काफी जान-पहचान है - मुझे भी जरा इन सबसे मिलवाओ। मैंने सोचा - मेरी जान-पहचान तो पुलिस वालों से लेकर गुन्डों तक तथा नेता से लेकर उनके चमचों तक है। 
माँ तो विद्यादायिनी है, क्यों न इन्हें विद्या के धरोहरों से साक्षात्कार करवाया जाय। 
सो अपनी बाइक में टंकी फुल कर उन्हें पीछे बिठा लिया और चल पड़ा। रास्ते में कुछ बच्चों को एक जगह एकत्रित होकर ताश की पत्तियाँ फेंटते देख माँ ने बाइक रूकवा दिया और पूछने लगी - 
ये बच्चे यहाँ क्या कर रहे हैं।
माँ यह विद्यालय है - सरकारी विद्यालय।
विद्यालय ? माँ ने आश्चर्यचकित हो पूछा यहाँ तो शिष्यगण हैं पर कोई गुरू ही नहीं - 
ये बच्चे कैसे ज्ञान अर्जन करेंगे ?
माँ - आज सभी गुरू हड़ताल पर हैं। इसीलिए शिष्य तो आये हैं पर गुरू नहीं।
चलिए आगे चलें -
यह महोदय क्या बेच रहे हैं ? माँ ये शिक्षक है - प्रमाण-पत्र बेच रहे हैं।
असफल विद्यार्थियों का उद्धार करते हैं - बड़े दयालु हैं - बेचारे।
उस लाल भवन में किस बात की भीड़ है ? माँ ने डरते-डरते पूछा ।
माँ यह विश्वविद्यालय है। यहाँ सभी विद्या के बड़े-बड़े रहनुमा रहते हैं। गुरू और शिष्य दोनों अपनी-अपनी मांगे माँग रहे हैं,  इसीलिए यहाँ हल्ला हो रहा है। 
आप मत डरिए - आपका कुछ नहीं होगा - आपको यहाँ कोई नहीं जानता।
उधर भी भीड़ - वहाँ मैदान में क्या हो रहा है ? माँ भयभीत हो गयी थी ।
माँ वहाँ कान्वोकेशन हो रहा है मैंने तुरन्त जोर देकर कहा ।
यह कान्वोकेशन क्या होता है ? माँ का गला रूंघ गया था ।
जो विद्या पूर्ण कर लेते हैं उन्हें प्रमाण-पत्र दिया जाता है। इसी के जरिए उन्हें मान-सम्मान, नौकरी-चाकरी तथा विद्यालयों में गुरू का पद मिलता है।
वह खादीधारी टोपी वाला आज का मुख्य-अतिथि है। इन्हीं के कर कमलों द्वारा प्रमाण-पत्र दिए जा रहे हैं।
तब तो इस खादीधारी के पास बहुत बड़ी डिग्री होगी ? माँ ने गम्भीरतापूर्वक पूछा ।
नहीं माँ यह तो मंत्री है। यहाँ का सबसे बड़ा आदमी है। ऐसे इन्होंने सिर्फ आठवीं दर्जा तक ही विद्या अर्जन किया है।
इतना सुनते ही माँ गुस्से में लाल हो गयी और मुझ पर बरस पड़ी। तुम झूठे हो - दो तरह की बातें करते हो। एक तरफ कहते हो इसी डिग्री के जरिए इन डिग्रीधारियों को पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान मिलेगा। फिर दूसरी तरफ कहते हो इस मंत्री के पास कोई डिग्री नहीं। भला इतना बड़ा पद, इतना सम्मान इन्हें कैसे मिला ?
हटो-हटो मुझे जाने दो - मैं सब कुछ समझ गयी।
मैं माँ-माँ चिल्लाता रहा, और वह मेरे सामने से ओझल हो गयी।

प्रकाशित : १२ फ़रवरी २००८ - rachanakar.blogspot.com / 
                                 Daynik Ranchi Express (Ranchi)

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