मंगलवार, मार्च 23, 2010
आंसू से प्यास बुझाता हूँ - सुजान पंडित
मम्मी गयी स्कूल पढ़ाने,
पापा गए हैं दफ्तर.
मन की बातें किससे बोलूं,
कोई नहीं है घर पर..
टॉफी बिस्कुट डब्बे में है,
डब्बे रैक के ऊपर..
भूख लगी तो हाथ बढ़ाया,
गिरा मुंह के बल पर..
बंद कमरे में रो रोकर,
और घुट घुट कर मैं जीता हूँ.
प्यास लगी तो ऑंसू से,
अपनी प्यास बुझाता हूँ..
मम्मी-पापा के बिना,
कितना मुश्किल है जीना.
बचपन से तो अच्छा है,
पचपन का हो जाना..
प्रकाशित : 22 दिसंबर 2009 - baaludyan.hindyugm.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें